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करे केहू कतहूँ गोहार / रिपुसूदन श्रीवास्तव

करे केहू कतहूँ गोहार,
नयनवाँ अनेरहूँ लोराला।
जिनगी का बखरा में घाव के अगोरिया,
कबहूँ अन्हार घेरे कबहूँ अँजोरिया,
राति-राति जोगवल कुँवार,
सपनवाँ दुारिए तँवाला।
बेरि-बेरि आवे चाहे ओठ का दुअरिया,
मनवाँ ना आवे देबे, धर अँकवरिया,
पपनी के सबुज ओहार,
करेजवा में पीर पोढ़ाला।
बदरा का साथे बहे अँखिया के कजरा,
धरती का केसे सोभे बुनियाँ के गजरा,
बरखा के रतिया अन्हार,
सवनवाँ में गीत गोराला
रहि-रहि उचटेला केहू खातिर जियरा,
चाहे होखे दूर चाहे होखे केहू नियरा,
दियरी के तेलवा उधार,
बतिहरा सुनुगते ओराला।