कर्जा लईकै दारू ब्यान्चौ / प्रदीप शुक्ल

कर्जु बैंक ते
लेव गजोधर
सीखौ तनिकु सलीका
कहाँ परे हौ हियाँ गांव मा
भागि चलौ अमरीका

छ्वाडौ खेती
काहे यहिमा
दीन्हे देतु परान
कर्जा लईकै दारू ब्यान्चौ
ख्वालौ याक दुकान

खुस रखिहौ सहेबन का तुम, तौ
डेरु ना तुम्हरे जी का

क्रिकेट खरीदौ,
कार खरीदौ
रोजु कराव कबड्डी
आसमान मा परिन ते ख्यालौ
करौ हुएं गड़बड्डी

कुंडल कवच लेव साहेब ते
तुमका अउरु चही का

हमरी मानौ
तौ दारू के
खोदवावौ तालाब
वहिमा केलि करैं रातिन मा
सहर के बड़े जनाब

कढ़िले का दुत्कारौ
लीन्हे घूमैं चेहरा फ़ीका

बीस हजार के
कर्जे मा
' ललतवा ' लगावै फाँसी
तुम लन्दन मा रहौ
हियाँ पर तुम्हरे आवै खाँसी

देसु सार रोई चिल्लाई
अउरु तुम्हार करी का।

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