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कर्जे हैं झूठे / ब्रजमोहन

बापू के अँगूठे पे कर्ज़े हैं झूठे
झूठों ने लूटे हैं जीवन अनूठे
                  बेटे से कहियो
              अनपढ़ न रहियो ...

बहियों में सपनों के आँसू की सीपी
मोती निकालें निकम्मे महाजन
ऊँची हवेली में बन्धक पड़ा है
गाँव के मन की ख़ुशियों का आँगन
हमसे ही क्यूँ देवता सारे रूठे
                  बेटे से कहियो

कोरट के कागज पे लिक्खा अन्धेरा
न्याय की कुर्सी पे बैठा लुटेरा
आँखों की भाषा रे मन से अलग है
कैसे पढ़ेगा तू होगा सवेरा
धोखे में कटते रहे हैं अँगूठे
                  बेटे से कहियो

जो बोले नेता वो तू न जाने
तू चाहे अम्बर वो दो बून्द पानी
तू माँगे जीवन वो दे एक धड़कन
सपने में प्यासे के प्यासी कहानी
तू चाहे आज़ादी वो बाँधे खूँटे
                  बेटे से कहियो
              अनपढ़ न रहियो ...