Last modified on 1 सितम्बर 2014, at 14:31

कर्णफूल / अविनाश मिश्र

बहुत बड़े थे वे और भारी भी
तुम्हारे कानों की सबसे नर्म जगह पर
एक चुभन में फँसे झूलते हुए
क्या वे दर्द भी देते थे
तुम से फँसे तुम में झूलते हुए —
क्या बेतुका ख़याल है यह —
क्या इनके बग़ैर तुम अधूरी थीं
नहीं, आगे तो कई तकलीफ़ें थीं