समझा व्यर्थ आदमी ने मकड़ी का जाला
पर मकड़ी के लिए वही जीवनाधार है
रक्षा और सम्भरण सबका समाहार है ।
इसी एक रचना में जिसको लगकर ढाला
मकड़ी ने, आई विपदाओं को भी टाला
और यहीं तो मकड़े का अन्तिम विहार है,
प्रजनन करना ही मकड़ी का मरण द्वार है,
जीवन जो पाया जी जी कर उसको पाला ।
जहाँ कहीं संचार-विध्न कम से कम पाया
मकड़ी ने, यह विरल दुर्ग अपने जाले का
टाँक दिया, चिन्ता कब की आहार के लिए,
वह तो अपने आप मिला करता है, आया
जैसे लपक लिया, गरमी का बसकाले का
जाड़े का इतवृत्त रहा संसार के लिए ।