Last modified on 22 दिसम्बर 2011, at 11:28

कर्त्तार-कीर्तन / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

पूरण पुरुष परम सुखदाता,
हम सब को करतार है।
मंगल-मूल अमंगल हारी, अगम अगोचर अज अविकारी,
शिव सच्चिदानन्द अविनाशी, एक अखण्ड अपार है।
बिन कर करे, चरण बिन डोले, बिन दृग देखे, मुख बिन बोले,
बिन श्रुति सुने, नाक बिन सूँघे, मन बिन करत विचार है।
उपजावे, धारे, संहारे, रच-रच बारम्बार बिगारे,
दिव्य दृश्य जाकी रचना को यह सारो संसार है।
प्राण प्राण को, जीवन जी को, स्वाभाविक स्वामी सब ही को,
इष्ट देव साँचे सन्तन को, ‘शंकर’ को भरतार है।