मैं नहाना चाहती हूँ
कर्मनाशा नदी में,
मैं धोना चाहती हूँ
अपने सभी -
पाप और पुण्य -
मैं बनना चाहती हूँ -
मनुष्य
और देखना चाहती हूँ -
अपने भीतर की
मानवता ।
अनुवाद : नीरज दइया
मैं नहाना चाहती हूँ
कर्मनाशा नदी में,
मैं धोना चाहती हूँ
अपने सभी -
पाप और पुण्य -
मैं बनना चाहती हूँ -
मनुष्य
और देखना चाहती हूँ -
अपने भीतर की
मानवता ।
अनुवाद : नीरज दइया