हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कर देस की रकसा चाल, लाल मेरे सज धज के
सुन दुसमन ने सीमा तेरी,
चारां तरफ से आकै घेरी,
क्या इस का नहीं ख्याल, लाल मेरे सज धज के
कर देस की रकसा चाल, लाल मेरे सज धज के
जिस दिन के लिये तन्नै दूध पिलाया,
वो दिन लाडले आज सै आया,
कर दे दिखा कमाल, लाल मेरे सज धज के
कर देस की रकसा चाल, लाल मेरे सज धज के
भूरे की माता बोलती सुण भूरा मेरा
ये सोलह सौ पद्मनी तेरे खड़ी चौफेरा
तनें देवर देवर कह रही क्यों मुखड़ा फेरा
रे राणी आंसू गेरै मोर ज्यों हिया लरजै मेरा
तोड़ बगादे कांगणा पकड़ो समसेरा
गौरी साह के दलां में रह ब्याह होजा तेरा
सांग्यां होजा आरता तलवारां फेरा
बैरी थाते तै के हुआ भाई था तेरा
सेर गढ़ां के पकड़िये तूं रहा भगेरा
तूं ओढ़ै ना चूंदड़ी मनें दे चीरा
मैं पडूं दलां में टूटके मार ढादूं ढेरा