Last modified on 27 मई 2017, at 14:23

कर मजरोॅ / नवीन ठाकुर 'संधि'

एक टा छै छोटोॅ हमरोॅ बुतरू,
खिलौना देवोॅ लानी केॅ तुतरू

खोजै छै दादा-बाबा,
मतुर छेॅ तोहें कत्तेॅ अभागा।
तोरोॅ जनमोॅ रोॅ पहिलेॅ मरलोॅ
तोरा छोड़ी सभ्भेॅ तोरोॅ दुनियां सें गेलोॅ
च्ूाप रहोॅ बेटा तोहें घुटरू,
एक टा छै छोटोॅ हमरोॅ बुतरू

देखै में कत्तेॅ छेॅ सुन्नर,
होतौं तोरा में कत्ते हुनर।
कानै छें खाय लेॅ मूढ़ी-घुघनी,
मतुर देवोॅ कहाँ सें लानी अखनी।
‘‘संधि’’ मन कहै देवोॅ शहद चुरू,
एक-टा-छै-छोटोॅ हमरोॅ बुतरू