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कलकत्ता / शंख घोष / सुलोचना वर्मा

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हे बापजान
कलकत्ता जाकर देखा हर कोई जानता है सब कुछ
सिर्फ मैं ही कुछ नहीं जानता
मुझे कोई पूछता नहीं था
कलकत्ता की सड़कों पर भले ही सब दुष्ट हों
खुद तो कोई भी दुष्ट नहीं

कलकत्ता की लाश में
जिसकी ओर देखता हूँ उसके ही मुँह पर है आदिकाल का ठहरा हुआ पोखर
जिसमें तैरते हैं सड़े शैवाल

ओ सोना बीबी अमीना
मुझे तू बाँधी रखना
जीवन भर मैं तो अब नहीं जाऊँगा कलकत्ता

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
               কইলকাত্তায়

বাপজান হে
কইলকাত্তায় গিয়া দেখি সক্কলেই সব জানে
আমিই কিছু জানি না
আমারে কেহ পুছত না
কইলকাত্তার পথে ঘাটে সবাই দুষ্ট বটে
নিজে তো কেউ দুষ্ট না

কইলকাত্তার লাশে
যার দিকে চাই তারই মুখে আদ্যিকালের মজা পুকুর
শ্যাওলপচা ভাসে

অ সোনাবৌ আমিনা
আমারে তুই বাইন্দা রাখিস,
জীবন ভইরা আমি তো আর কইলকাত্তায় যামু না

('दिनगुलि रातगुलि' नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - बाउल)