कलात्मकता के नाम पर / सूरजपाल चौहान

परम्परा का पहाड़ा
रटाने वालो
ऊँचे घरानों के
ढोल पीटने वालो
रास्ते का—
पत्थर बनकर
क्यों मेरे मार्ग को—
अवरुद्ध करते हो?
कलात्मकता की दुहाई देकर
क्यों मेरे क़लम की स्याही
पोंछना चाहते हो!

हमेशा से तुमने
मेरे सृजन को
अपना कहा है
परम्परा की दुहाई देकर
छला है
और गढ़ा है
गप्पी साहित्य
कलात्मकता के नाम पर।

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