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कला / प्रिया वर्मा

भस्मीभूत अस्थियों को पानी में बहाते हुए
पानी में कुछ अधिक देर तक मैं ठहरी रही।
मानो कि कुछ आधे घण्टे तक मैं पानी ही में रही।

पानी ने अस्थियों को अपना लिया, तब
मैंने सोचा कि अब से
पानी भी मेरा पिता है

किसी पर सदय हो/न हो, पानी मुझ पर दया करेगा।
वह तो मेरा पिता है।
आकाश के अलावा अब उसे भी
मेरे सब सुख दुःख का पता है।

या इस तरह कहूँ
कि अब से मेरे पिता रहते हैं पानी में
किसी दिन पानी मुझे भी अपना लेगा।
मुझे। मेरी भस्म को।
पिता से मिला देगा।

जो जिस से जन्मा है
उसे उस तक ले जाना
पानी ही की एक कला है।