कलित कल्पतरु-कुंज सुगंधित सुमनावलि-मंडित कमनीय।
अवतारावलि-अंबुज-दल मनि-रत्न-रचित आसन रमनीय॥
सुख पहुँचावन हेतु परस्पर सजे सकल अँग सुंदर साज।
मधुर मनोहर राधा-माधव एकहि दो बन रहे बिराज॥
सील-सँकोच-भरी मुख-छबि पर छलकि रह्यौ हिय-रस कौ भाव।
बोल न निकसत मुख दोउन कैं, उमगि उठ्यो बोलन कौ चाव॥
अति सुंदर माधुर्य-सुधानिधि, अखिल-रसामृत-सिंधु अपार।
जय रसमयि राधा, जय माधव रसिक-सिरोमनि परम उदार॥