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कली कली की अंगड़ाई से छलक रहा है रंग / रिंकी सिंह 'साहिबा'

कली कली की अंगड़ाई से छलक रहा है रंग,
महक उठी है सारी धरती, झूम रहा नभ संग,
बरसता मन मे सावन,
बसे नैनो में साजन।

सुरभि वसंती सौरभ लेकर गली गली बलखाय,
मादक गति से मौसम को पग पग बहकाती जाय,
सांसों की सरगम पर बजता है धड़कन का चंग,
बरसता मन मे सावन,
बसे नैनों में साजन।

नाचे मोर,पपीहा गाए, पंछी करे किलोल,
यौवन पर इठलाये सरिता, मन में उठे हिलोल,
मौजों को छेड़े हौले से आकर मस्त मलंग।
बरसता मन में सावन।
बसे नैनों में साजन।

हरी चूड़ियां,लाल महावर, डाल गले में हार,
पिया मिलन को चली बाँवरी कर सोलह सिंगार,
बूँद बूंद में लाया सावन भर के नई उमंग।
बरसता मन में सावन
बसे नैनों में साजन।

 मैंने पूछी इक विरहन से जब सावन की बात,
सूखा सूखा मन का आँगन नैन करे बरसात,
बोली- रात जुन्हाई की मुझको करती है तंग।
बरसता मन में सावन।
बसे नैनों में साजन।