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कल्पनाओं में स्त्री / अनुभूति गुप्ता

देहरी की सीमाएँ भूलकर
सब मर्यादाएँ तोड़कर
नील गगन में
आजाद पंछी-सा
उड़ने का मैंने सोचा है।

नदी की शीतल मधुर सौम्य
धारा पर नंगे पाँव
चलने का मैंने सोचा है।

मासूम-सी कल्पनाओं में
अपनी उजली सूरत पर
कमल खिलते हुए देखा है।

धवल चाँदनी-सा खुद को
इन स्याह रातों को
उज्ज्वल करते हुए देखा है।