मिथ, कल मिथ्या : कल की निशि घनसार तमिस्रा और अकेली होगी- स्मृति की सूखी स्रजा रुआँसी एक सहेली होगी। चरम द्वन्द्व, आत्मा नि:सम्बल, अरि गोपित, मायावी- प्यार? प्यार! अस्तित्व मात्र अनबूझ पहेली होगी! दिल्ली-शिलङ् (रेल में), 8 जनवरी, 1945