एक शोकगीत की आवाज़ की तरह
पार करता हूँ इस रुके हुए दिन की दूरियाँ।
एक प्याली भर स्याही में डुबोता हूँ पलकें
आँख भर नींद के लिए।
इन्हीं पलकों से निकलकर सूर्य
बनाता आया है कल का दिन।
एक शोकगीत की आवाज़ की तरह
पार करता हूँ इस रुके हुए दिन की दूरियाँ।
एक प्याली भर स्याही में डुबोता हूँ पलकें
आँख भर नींद के लिए।
इन्हीं पलकों से निकलकर सूर्य
बनाता आया है कल का दिन।