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कविताक वितान मे / दीप नारायण

हम नहि! अहूँ नहि!
एहि बातक पाछा
व्याकुल अछि
समुच्चा मानव जाति,
कौआ-चील
गाछ-वृक्ष, चुट्टी-पिपरी
एहि फूल परहक फतिंगा सेहो
विकराल अछि ई समय
से ठीके!
हमरे लेल नहि,
कि अहीँक लेल नहि
समुच्चा पृथ्वीक लेल

पृथ्वीक अंतिम साँस लेबय सँ पहिने
नहि देखबा मे आबि रहल अछि,
एखन ओ, कल्याणकारी नीलकंठ
जे उड़ि-उड़ि क'
अबैत छल बैस' लेल
हमरा घरक सोझाँ मे
बिजलीक तार बला पोल पर,
नहि पहुँचि रहल अछि कान धरि
महादेव मंदिरक घण्टा आ आरतीक स्वर सेहो

कू कू जतेक बेर कहैत छलियै हम
ततेक बेर हमर कू कूक प्रतिउत्तर मे
आम गाछक फुनगी पर सँ नित्तह
ओ कोइली अपन अवाज मिठाबय लेल
करैत रहैत छली हमरा संगे रियाज
कतय चलि गेली ओ ?
कियो नहि देखलखिन!

गाम-घर, शहर
देस-विदेस
सिकुड़ि गेल अछि सभ
'आइसोलेट' भ' चुकल छी हम
अपन घर मे, घरक एकटा कोन मे
आ दोसर कोन मे अहाँ
नहि जानि कतेक प्रकाशवर्खक दूरी पर

धर्म-अधर्म
युद्ध-महायुद्ध
अनु-परमाणु
क्रूज-मिसाइल
वर्ण-जाति
खण्ड-पाखण्ड
ढोंग-चमत्कार
भक्ति-अंधभक्ति
वेद, पुराण,उपनिषद
गीता, रमायण, कुरान
एतय धरि कि जासूसी उपन्यास पर्यन्त
निःशब्द अछि
फुटि नहि रहल छनि बकार
नहि सूझि रहल छनि कोनो उपाय
नहि लागि रहल छनि कोनो उक्ति

चौपेतले रही गेलैक उतरबरिया हन्नाक
पुबरिया कोन महक कोठीक कान्ह पर रक्षातंत्र

जेना पोखरिक पानि मे
ढ़ेप मारलाक बाद
डोलय लगैत छैक मुँहक छाह
तहिना डोलि रहल अछि एखन पृथ्वी
भोरे-भोर हॉकर फेंक जाइत अछि अखबार जेना
बिग देलकैक अछि कियो जुमा क'
सुरुज केँ कारी समुद्रक बीच

ई मंगल वा कि चंद्रयात्रा नहि थिक
जकरा नापि लेबै रॉकेट सँ झट द'
ई चीन, अमेरिका, इटली
रूस, फ्रांस आ भारत थिकि
ई पृथ्वी थीकि मीत
एतय दुनू पाएर मात्र साधन छैक
जकरा एखन गछेर लेने अछि निठुर समय

समय एखन बटि गेल अछि
कय गोट खेमा मे
आ ओ सभ खेमा आपस मे
क' रहल अछि वार्तालाप
तार्किक वार्तालाप !
ओहि वार्तालाप सँ भ' रहल अछि
नव-नव विचारक प्रस्फुटन
जकरा ओ सभ मौलिक कहि
विदेशी लेबुल लागल लिफाफ सँ बारह क'
पैक क' रहल अछि पॉलोथिन मे

बात जे किछु होउ मुदा,
सत्य आ बहुत कठिन वाक्य अछि

ई समय धकिया रहल अछि हमरा सभकेँ
आ धकियबैत-धकियबैत
द' आओत पाछु, बहुत पाछु
हमरा लोकनि चलि जायब
आगु सँ पछिला शताब्दी दिस
साँपक केँचुआ जकाँ

हमरा डर अछि!
ताहि सँ बेसी हिम्मति अछि!
ई जे अन्तिम वाक्य जे ओ कहि रलह छथि
से कोनो कवियेटा कहि सकैत छथि

हम बचा लेबैक पृथ्वी केँ अपन कविताक वितान मे
कविता केँ डर नै होइत छैक
बहुत निडर अछि!
तेँ ईश्वर जकाँ लगैत अछि कविता।