मन में पावन पग री !
द्युतिमय सब जग-मग री !
कविते ! है चरण-ध्वनि
तेरी नव मंद सुनी ,
मैं हूँ कुछ नहीं गुणी
डोल रहा डग -मग री !
नये -नये अर्थ सजे
सरस भाव लाज लजे ,
झनक अनुप्रास बजे
गीत उठा है जग री !
तुमने जो मुझे चुना
शब्द बुना ,छंद बुना ,
धन्य हुआ पुन:-पुन:
मेरा जीवन-जग री !!
(चल, शब्द बीज बोयें, २००६)