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कविता-दोय / विनोद स्वामी

एक तिरस्यो मिनख
ठंडां री दुकान करै।

एक भूखो मिनख
जळेबी बेचै।

एक घरबायरो आदमी
हेली चिणै।

आ तो कोई अचंभावाळी बात कोनी

पण
एक चापलूस मिनख
कविता लिखै!