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कविता-प्रार्थना / महेन्द्र भटनागर

आदमी को
आदमी से जोड़ने वाली,
क्रूर हिंसक भावनाओं की
उमड़ती आँधियों को
मोड़ने वाली,
उनके प्रखर
अंधे वेग को — आवेग को
बढ़
तोड़ने वाली
सबल कविता —
ऋचा है, / इबादत है !
उसके स्वर
मुक्त गूँजें आसमानों में,
उसके अर्थ ध्वनित हों
सहज निश्छल
मधुर रागों भरे
अन्तर-उफ़ानों में !

आदमी को
आदमी से प्यार हो,
सारा विश्व ही
उसका निजी परिवार हो !

हमारी यह
बहुमूल्य वैचारिक विरासत है !
महत्
इस मानसिकता से
रची कविता —
ऋचा है, इबादत है !