भासा री खिमता नै
तोलणै री
ताकड़ी है कविता,
सबदां रै भारै में
चनण री
लाकड़ी है कविता,
सांच है सौ टचं
न नुवीं है
न पुराणी है कविता,
मिनख रै हियै में
उकळतै भोभर री
सैनाणी है कविता,
गुड़ है गूंगै रो
उठा-पटक रो
अखाड़ो कोनी कविता,
औखध है आत्मा री
माटी री काया रो
भाड़ो कोनी कविता !