कांई हुवै
ले’र बैठयां
कागद’र कलम
बिना संवेदणा
कोनी हुवै
सिरजण
मनैं ठा है
तनैं है सगळा छन्दां रो
ज्ञान
थारै कनै है
अखूट सबदां रो भंडार
पण कविता
कोनी कोई कारीगरी
आ तो है अबोल
अंतस री ऊंडी पीड़
जकी आवै बार
जद मथीज’र
हिवड़ै रो समन्दर
बण ज्यावै आदमी री आतमा
परमेसर !