कविता कभी मन को भाती
रससिक्त मदमाती कामिनी सी
कभी सुघड़ सुकोमल नवयौवना सी
अलंकारो से विभूषित
लजाती सकुचाती दुल्हिन सी
मरू उर को सींचती रसधार सी
निर्मलता हृदय की
पावन गंगधार सी
कभी प्रज्ञा के उन्नत शिखरों को छूती
जन-जन को उद्वेलित करती
कविता हो रही प्रतिभासित
सर्वहारा की पीड़ा संत्रास में
अश्रुधार में
आज की कविता
नायिका के मधुर अधर नहीं
नख शिख सौन्दर्य वर्णन भी नही
कविता आम आदमी की
वेदना विडम्बना का प्रतिबिम्ब है
कविता मात्र अमृतपान नही
विषपान भी है
कविता परानुभूति से
स्वानुभूति की अनन्त यात्रा है
जीवन को जीना है
समाज का आईना है कविता।