कविता वहीं से करती है
हमारे संग सफ़र शुरू
जहाँ से लौट जाते हैं
बचपन के अभिन्न दोस्त
अपनी-अपनी दुनिया में
जहाँ से माँ करती है हमें
दूर देश के लिए विदा
जिस मोड़ पर
अपनी उँगली छुड़ाकर
अकेले चलने के लिए
कहते हैं पिता
ठीक वहीं से करती है
हमारे संग कविता
अपना सफ़र शुरू