Last modified on 26 जून 2017, at 11:46

कविता : अेक / विजय सिंह नाहटा

अनघड़ भाठो हूं रूपहीण
साकार नीं म्हां में म्हारो ई अणंत
इक धार-इक रस
लयबंधी
छिणी री अचाणचक मार
दीठ में ल्यावै अंग पड़अंग
तरास परो अणसैंधो कलाकार
कठै किण दिठाव सूं पाछा होवो आप साकार।