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कविता : एक /श्याम महर्षि

कविता
गोली नहीं है नीद की…
नहीं है वह
गोली बंदूक की !

कविता तो
मेरे मन की खुराक है
कदमों का पड़ाव है
मेरी कविता !

कौन जाने यह पड़ाव
मेरी जिंदगानी के
पूर्ण-विराम से
कुछ अलग-थलग है ।

वहां तक पहुंचने के लिए
मुझे करने पड़ते हैं सवाल
जिनका जबाब
इस दुनिया को देना है ।

अनुवाद : नीरज दइया