कविता
अलार्म घड़ी नहीं है दोस्तो
जिसे सिरहाने रख कर
तुम सो जाओ
और वह हर नियत वक़्त पर
तुम्हें जगाया करे।
तुम उसे
संतरी मीनार पर रख दो, तो
वह दूरबीन का काम देती रहेगी।
वह सरहद की मुश्किल चौकियों तक
पहुँच जाती है राडार की तरह,
तो भी
मोतियाबिन्द के शर्तिया इलाज का दावा
नहीं उसका।
वह बहरे कानों की दवा
नहीं बन सकती कभी।
हाँ, किसी चोट खाई जगह पर
उसे रख दो
तो वह दर्द से राहत दे सकती है
और कभी सायरन की चीख़ बन
ख़तरों से सावधान कर सकती है।
कविता ऊसर खेतों के लिए
हल का फाल बन सकती है,
फरिश्तों के घर जाने की ख़ातिर
नंगे पाँवों के लिए
जूते की नाल बन सकती है,
समस्याओं के बीहड़ जंगल में
एक बागी सन्ताल बन सकती है,
और किसी मुसीबत में
अगर तुम आदमी बने रहना चाहो
तो एक उम्दा ख़याल बन सकती है।