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कविता : एक निर्णय / दिविक रमेश

शीर्षक बदलने होंगे कविताओं के

क्योंकि कविता

अब मेरे लिए

लगाम है


कभी ख़ुद पर

कभी दूसरों पर ।


शौक़ में

भांडों के तमाशे

और भूख में

औरत की मज़बूरी का

चित्र

अब मेरी कविता

नहीं खींचेगी

क्योंकि कविता

अब मेरे लिए

फ़ौलादी मुक्का है

कभी शौक पर

कभी भूख पर ।


शिकायतों का पोथा

अब मेरी कविता नहीं है

मेरी कविता

बदनाम औरत की तरह

सरेआम

बकने के क़ाबिल है ।


वह चुप साधे

सकुचाई कामिनी नहीं

जिसकी

अपने साथ हुई हरकत

बताते भी

मर्यादा (?) भंग होती है ।


क्योंकि अब

कविता

निर्णय है,

निर्णय की भूमिका नहीं ।