Last modified on 24 जनवरी 2020, at 00:03

कविता और जोकर / सरोज कुमार

वे मेरी कविताएँ सुनने नहीं आए हैं।

समारोहों में सजधजकर जाना
और कविता तक आना
दो अलग-अलग बाते हैं।
वे मेरी कविताएं सुनने
नहीं आए हैं।

कल वे मुझे
सरकस में दिखे थे,
जोकरों की फूहड़ तुकबंदी पर
उछल-उछल दाद देते हुए।
जोकरों में कविता खोजने वाले,
कविता में
जोकर खोजने आते हैं।

वे मेरी कविताएँ सुनने नहीं आए हैं।