रचने लगती जब
कविता
बज उठता
आटे का पीपा
ठन-ठन।
सुन पड़ते बोल
पत्नी के-
नून-तेल-लकड़ी,
ये चीज, वो चीज।
टटोलता है कवि
जेब अपनी
जानता है जबकि
खाली है वह
आटे के पीपे-सी।
सामने फडफ़ड़ा रहा
वह पन्ना
मंडी जिस पर
एक कविता
अधूरी।
1991