मेरी भाषा का व्याकरण
पाणिनि नहीं
पददलित ही जानते हैं
क्योंकि वे ही मेरे दर्द को--
पहचानते हैं :
मेरी कविता का कमल
बगीचे के जलाशयों में नहीं;
झुग्गी-झोपडियों के कीचड़ में खिलेगा;
मेरी कविता का अर्थ
उत्तर पुस्तिकाओं में नहीं
फुटपाथों पर मिलेगा!
मेरी भाषा का व्याकरण
पाणिनि नहीं
पददलित ही जानते हैं
क्योंकि वे ही मेरे दर्द को--
पहचानते हैं :
मेरी कविता का कमल
बगीचे के जलाशयों में नहीं;
झुग्गी-झोपडियों के कीचड़ में खिलेगा;
मेरी कविता का अर्थ
उत्तर पुस्तिकाओं में नहीं
फुटपाथों पर मिलेगा!