Last modified on 22 अक्टूबर 2020, at 00:17

कविता की खोज / कमलेश कमल

अगर सुन सकती हो
तो सुनो
कि मेरे हृदय का
हर अक्षांश
हर देशांतर बेहाल है।

कलात्मक बेचैनी का
घनघनाता शोर...
गूँज रहा है-
मेरे मन के बिखरे भूगोल में।

तलाश बेशक जारी है
उन चंद सधे शब्दों की
जो दिखा सके
मेरे भावो के कंटूर,
और उलझनों के ग्रिड!

पर, अगर हो सके
तो लौट आओ...
करो मुझसे बातें।
लौटा दो मेरा कंपास-
ताकि पूरी हो
मेरी कविता कि खोज॥