सबसे पहले
सारस के पंखों-सा
दूधिया कोरा काग़ज़ दो
फिर एक क़लम
जिसकी स्याही में घुला हो
असँख्य काली रातों का अँधकार
थोड़ी-सी आग गोरसी की
थोड़ा-सा धुआँ
थोड़ा-सा जल आँखों का
जो सपनों की जड़ों में भी बचा हो मुझे दो
कविता लिखने के लिए
हज़ारों झुके सिरों के बीच
एक उठा हाथ
हज़ारों रूंधे कंठों के बीच
एक उठती चीख़
हज़ारों रूके पाँवों के बीच
एक आगे बढ़ता पाँव
एक स्ञी की हँसी
एक बच्ची की ज़िद
एक दोस्त की धौल
और लहसुन की महक से भरा
एक घर मुझे दो
कविता लिखने के लिए
एक काँस का फूल
जो गाँव के माथ पर
सजा हो
एक चिडिया की आवाज़
जो कँवार-कार्तिक में
सुनाई देती है
एक किसान का मन
जो लुवाई के समय प्रसन्न हो
मुझे वसन्त की ख़ुशबू से भरी
पूरी पृथ्वी दो
कविता लिखने के लिए।