जब-जब शब्द कण्ठ में सिसकी से अटके
हमने उन्हें कविता में पिरो लिया
कविता में लिखे हमने हमारे दुःख
बुन दिए शब्दों में हर छोटे-बड़े सुख
कविता में हमने अन्धेरों के रतजगे लिखे
कविता में हमने उजालों के भय लिखे
कविता ने समेट लिया हमारा अकेलापन
कविता रोटी नहीं बन सकी
कविता रोशनी भी नहीं ला सकी
लेकिन हम जब भी टूटे तो
टूट कर बिखरने को हुए
कविता ने हमें थाम लिया
संगी साथ छोड़ते गए
लौटते क़दमों की थाप से हृदय काँपा
कविता उँगली थामे खड़ी रही
जब हर मन्त्र बेअसर रहा
वह प्रार्थना-सी होंठों पर आती रही
सूखे हुए मौसम में
वह पलकों पर नमी बन टिकी रही
हमें रोना-हँसना याद रहा
हम जी सके
हम जीते रहेंगे
कि हमने कविता कही