कविता क्या है
यह जो अनहद नाद बज रहा भीतर
एक रेशमी नदी सुरों की
अँधियारे में बहती
एक अबूझी वंशीधुन यह
जाने क्या-क्या कहती
लगता
कोई बच्ची हँसती हो कोने में छिपकर
या कोई अप्सरा कहीं पर
ग़ज़ल अनूठी गाती
पता नहीं कितने रंगों से
यह हमको नहलाती
चिड़िया कोई हो
ज्यों उड़ती बाँसवनों के ऊपर
काठ-हुई साँसों को भी यह
छुवन फूल की करती
बरखा की पहली फुहार-सी
धीरे-धीरे झरती
किसी आरती की
सुगंध-सी कभी फैलती बाहर