एक कवि
रचता है ईश्वर
दूसरा उसे अपना सखा बना लेता है
तीसरा उसमें खोजता है मानुष-सत्य
एक चौथा भी है
जो उसके प्रस्थान की घोषणा करता है
आप जानते होंगे उस पाँचवे को
जिसकी कविता में ईश्वर की कोई जगह नहीं ।
एक कवि
रचता है ईश्वर
दूसरा उसे अपना सखा बना लेता है
तीसरा उसमें खोजता है मानुष-सत्य
एक चौथा भी है
जो उसके प्रस्थान की घोषणा करता है
आप जानते होंगे उस पाँचवे को
जिसकी कविता में ईश्वर की कोई जगह नहीं ।