उड़ते-उड़ते तितली बोली,
दादाजी क्या हाल-चाल हैं।
सुबह-सुबह से लिखते रहते,
यह तो सचमुच ही कमाल है।
लिखो हमारे बारे में भी,
कठिन दौर से गुजर रहे हैं।
रस पीने अब कहाँ मिलेगा,
फूल नहीं अब निखर रहे हैं।
पेड़ काट डाले लोगों ने,
फूलों के पौधे भी ओझल।
आज बचे जो भी थोड़े से,
वह भी शायद काटेंगे कल।
चिड़िया कोयल तितली भंवरे,
इसी सोच में अब हैं भारी।
दादाजी कविता में लिखना,
यह थोड़ी-सी व्यथा हमारी।
बिना पेड़-पौधों के होगा,
कहाँ हमारा ठौर-ठिकाना।
दुनिया से यह प्रश्न पूछना,
दुनिया से उत्तर मंगवाना।