कविता की बारीकियाँ
कविता के सयाने ही जाने।
इधर तो
जब भी लगा है कुछ
असंगत, पीड़ादायक
महसूस हुई है जब भी भीतर
कोई कचोट
कोई खरोंच
मचल उठी है कलम
कोरे काग़ज़ के लिए।
इतनी भर रही कोशिश
कि कलम कोरे काग़ज़ पर
धब्बे नहीं उकेरे
उकेरे ऐसे शब्द
जो सबको अपने से लगें।
शब्द जो बोलें तो बोलें
जीवन का सत्य
शब्द जो खोलें तो खोलें
जीवन के गहन अर्थ।
शब्द जो तिमिर में
रोशनी बन टिमटिमाएं
नफ़रत के इस कठिन दौर में
प्यार की राह दिखाएं।
अपने लिए तो
यही रहे कविता के माने
कविता की बारीकियाँ तो
कविता के सयाने ही जाने।