Last modified on 18 जून 2009, at 12:03

कविता सतत अधूरापन / कविता वाचक्नवी

कविता सतत अधूरापन

कविता........!
सतत अधूरापन है
पहले से दूजे को सौंपा
आप नया कुछ और रचो भी
कविता नहीं
पूर्ण होती है।
कितने साथी छोड़ किनारे
वह अनवरत
बहा करती है
कितने मृत कंकाल उठाए
वह अर्थी बनकर
चलती है
सभी निरर्थक संवादों को
संवेगों से ही
धोती है
कविता नहीं
पूर्ण होती है।