कविता से
मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ कविता
बहुत शुक्रगुजार हूँ आज तुमसे मुलाक़ात के लिए
(ज़िंदगी और किताबों में)
तुम्हारा वजूद सिर्फ उदासी के चकाचौंध कर देने वाले
भव्य अलंकरण के लिए ही नहीं है
इसके अलावा हमारी जनता के इस लम्बे और कठिन संघर्ष के
काम में मेरी मदद करके
तुम आज मुझे बेहतर कर सकती हो
तुम अब अपने मूल में हो :
अब वह भड़कीला विकल्प नहीं रही तुम
जिसने मुझे अपनी ही जगह से बाँट दिया था
और तुम खूबसूरत होती जाती हो
कामरेड कविता
कड़ी धूप में जलती हुई सच्ची खूबसूरत बाहों के बीच
मेरे हाथों के बीच और मेरे कन्धों पर
तुम्हारी रौशनी मेरे आस पास रहती है.
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अनुवाद : मनोज पटेल