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कविता होने की यह घटना / कुमार रवींद्र

कविता होने की
यह घटना
आज सुबह की
 
ठीक सामने से निकली
हँसती एक लड़की
लगा कि जैसे
बिन बादल ही बिजुरी चमकी
 
भूले हम तकरार
रात की
बिला वज़ह की
 
लय हँसने की भीतर पैठी
गीत हो गई
उजली धूप हुई साँसें
जो रहीं सुरमई
 
लड़की थी वह नहीं
हमारी इच्छाएँ थी
कनखी-कनखी उसकी
मानो, कविताएँ थीं
 
दिन-भर
मौसम ने
बातें कीं बहकी-बहकी