तुझमें दो किस्म की गहराई थी
एक तो थी तेरे शरीर की
और एक तेरी।
एक सीमित थी एक असीमित।
जो सीमित थी उसमें से मैं कुछ न पा सका।
जो असीमित थी,
उसमें से सीपियों में बंद कविताएँ निकली।
ये कविताएँ मेरे कमरे में
गुलदस्तों की जगह सजी हैं।
तुझमें दो किस्म की गहराई थी
एक तो थी तेरे शरीर की
और एक तेरी।
एक सीमित थी एक असीमित।
जो सीमित थी उसमें से मैं कुछ न पा सका।
जो असीमित थी,
उसमें से सीपियों में बंद कविताएँ निकली।
ये कविताएँ मेरे कमरे में
गुलदस्तों की जगह सजी हैं।