Last modified on 7 अक्टूबर 2019, at 15:28

कविता - 8 / योगेश शर्मा

जिन घरों में रंग नही होते
वहाँ फबते हैं फूलों के रंग
अधिक,
जिन घरों में हकीकत बहुत कड़वी होती है
वहाँ विकसित होती है कल्पनाएं
अधिक,
उन घरों के आंगनों में,
पनपकर सूख जाते हैं भाषों के सब सिद्धान्त।

उन घरों की खूँटियों पर टँगा मिलेगा
खेत का सामान, पुराने लिफाफे आदि आदि...
लेकिन नही मिलेगी ऐसी खूँटी कोई
जिस पर टँग सकें गहरे सन्ताप, फैली पीड़ाएँ
और अहरह के दुख।

एक दिशा है जिसमें एक अमीर तारा
कभी नही डूबता,
उस दिशा में कभी नही जाता सूरज
उस दिशा में;
जिसमें कभी गरीबी अस्त नही होती,
दुनिया में जितने बेरंग घर हैं
सब उसी दिशा में हैं।

मैं जिंदगी में जितने इंद्रधनुष देखूँगा,
सबसे रंग माँगूँगा,
उन घरों के लिए
जिनकी दीवारें बेरंग होती हैं।