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कविनामा-1(आलोकधन्वा के लिए) / नीलाभ

खजूर की तरह है मेरा यह मित्र
आप कहेंगे भला यह कैसा मित्र हुआ
छाया को नाम नहीं और फल भी लागे दूर

जानता हूँ-- इकहरा खड़ा रहता है मेरा यह मित्र
उतनी ही घाम झेलता है
जितनी की आप इसकी डालियों के नीचे

रहें फल तो भले दूर लगें
पर अनिवार्य श्रम से हाथ आने पर
तृप्त कर देते हैं काया।