राजनांदगाँव की नीरव शांत रात्रि
कवि रामकुमार कृषक
मांझी अनंत
शाकिर अली
पथिक तारक, शरद कोकास
महेश पुनेठा, रोहित
कविता-पाठ और कविताओं के दौर के बीच
अंधेरे की धाक गहराती रही
देर रात हुई
सभा विसर्जित
पहली किरण की तरह
कमरे में प्रवेश हुआ सुबह
कवि विजय सिंह
साँस में लंबी गहरी गंध लेते हुए यह पहला ही वाक्य फूटा :
यहाँ बीड़ी पी है किसी ने ?
नीरे निखट्ठू
तमाखू के विकर्षण से ग्रसित मित्रों में
विसंगत था यह वाक्य कहना :
बीड़ी पी किसी ने !
ताज़ा हुआ
सदाबहार
लहलहाता
वही तैल चित्र महामना कवि का
जैसे आज भी सुन रहे हैं
गुन रहें हैं
दिख रहे हैं
छिप रहे हैं
कविता में उपस्थित मुक्तिबोध !!