कवि या लेखक नहीं लिखता
कभी स्वयं के सुख की स्वस्ति
या भुक्त दुखों का आत्मगान।
दूसरों के दुःख को
अपने हृदय में करता है धारण
और दुनियाभर के आँसुओं को
अपनी पलकों में भर लेने का
दुरूह कार्य करता है
कोई कवि या लेखक।
कितना मुश्किल होता होगा
किसी कवि या लेखक के लिए
दूसरों के हिस्से के
आँसुओं को अपने हृदय में
भरकर आँखों से बहाना।
इसीलिए हर कोई व्यक्ति
कह और लिख तो पाता है
पर हर कोई व्यक्ति
नहीं बन पाता है
कवि या लेखक।