शायर का सिर
नदी का पानी
उतर गए दोनों एक साथ
सिर में बहती थी तेज़ नदी
नदी में पकते थे कवि के शब्द
उतर गए पानी
किनारे पर कीचड़
कीचड़ में कटा कवि का मुण्ड
चुप है लेकिन अभी भी उछलता है गर्म-गर्म
अपनी रेत में सो गए पानी
किनारे पर खड़ा धड़ लेकिन लौट गया शहर को
बिखेरता
अपने लहू की आयतें ।
पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल