Last modified on 12 मई 2009, at 19:29

कवि और आदमी / रवीन्द्र दास

थक गया है कवि
और सोया है आदमी गहरी नींद में,
जिसके दिमाग में कई कमरे हैं -
कोई नींद का,
कोई प्यार का,
कोई बदकारी का तो कोई समझौते का
थका हुआ कवि इर्ष्या करता है तुलसीदास से
कि अकेला आदमी कैसे पढ़ पाता है सारे जागतिक भाव
कैसे विचरण कर लेता है
आदमी के दिमाग के हर कमरे का

०००

थका हुआ कवि
और सोया हुआ आदमी
आदमी जागेगा , तरोताज़ा होगा
लेकिन कवि सो नहीं पाएगा
और आदमी,
पत्नी पर रौब गाठेगा
बेटे को स्कूल भेजेगा
बॉस की चापलूसी करेगा
और ईमान बेचेगा...
कवि तरसता रह जाता है रोज़
रच डालूँ इस आदमी को पूरा का पूरा
कवि और थक जाता है
और झल्लाहट में भूल जाता है।