Last modified on 24 अप्रैल 2020, at 22:02

कवि का रिक्त स्थान / शिव कुशवाहा

एक कवि का जाना
जैसे एक युग का अस्त होना
सूरज की किरणों की तरह
फैलती है उसकी कविता कि परिधि
अर्थ-संवेदना डूबती इतराती है
कविता कि अंतश्चेतना में।

भावसंपृक्ति के अलिखित दस्तावेज़
रखे रह जाते हैं
दिमाग की नसें भी दे जाती हैं जवाब
खुली आंखों से कवि देखता है संसार
और एक दिन
उड़ जाता है पक्षी की तरह,
अपने घरौंदे से
सब कुछ छोड़कर...

अपनी कविताओं में जिंदा रहता है ताउम्र
कवि जो बुनता है अपना रचना संसार
उसके ही इर्द-गिर्द ढूँढते हैं हम
साहित्य में कवि का रिक्त स्थान...